स्नान के प्रकारः मन:शुद्धि के लिए Type of bath: For purification
स्नान
सूर्योदय से पहले ही
करना चाहिए। मालिश के आधे घंटे
बाद शरीर को रगड़-रगड़
कर स्नान करें। स्नान करते समय स्तोत्रपाठ, कीर्तन या भगवन्नाम का
जप करना चाहिए। स्नान करते समय पहले सिर पर पानी डालें
फिर पूरे शरीर पर, ताकि सिर आदि शरीर के ऊपरी भागों
की गर्मी पैरों से निकल जाय।
Bath should do before sunrise. After half an hour of massage
rub the body after rubbing it. While bathing, chanting of hymn, kirtan or
bhavnnam should be chanted. While bathing, first pour water on the head then on
the whole body, so that the head and body of the upper part of the body should
be removed from the feet.
'गले
से नीचे के शारीरिक भाग
पर गर्म (गुनगुने) पानी से स्नान करने
से शक्ति बढ़ती है, किंतु सिर पर गर्म पानी
डालकर स्नान करने से बालों तथा
नेत्रशक्ति को हानि पहुँचती
है।'
स्नान करते समय मुँह में पानी भरकर आँखों को पानी से
भरे पात्र में डुबायें एवं उसी में थोड़ी देर पलके झपकायें या पटपटायें अथवा
आँखों पर पानी के
छींटे मारें। इससे नेत्रज्योति बढ़ती है।
'Bathe with warm (lukewarm) water on the body part below the
throat increases strength, but by putting hot water on the bath, bathing can
harm the hair and eye power.'
While bathing, fill
water in the mouth and immerse the eyes in a vessel filled with water, and
blink it in a little while or spit or spray water on the eyes. This increases
the eyeballs.
निर्वस्त्र होकर स्नान करना निर्लज्जता का द्योतक है
तथा इससे जल देवता का
निरादर भी होता है।
किसी नदी, सरोवर, सागर, कुएँ, बावड़ी आदि में स्नान करते समय जल में ही
मल-मूत्र का विसर्जन नही
करना चाहिए। प्रतिदिन स्नान करने से पूर्व दोनों
पैरों के अँगूठों में
सरसों का शुद्ध तेल
लगाने से वृद्धावस्था तक
नेत्रों की ज्योति कमजोर
नहीं होती। स्नान के प्रकारः मन:शुद्धि के लिए- ब्रह्म
स्नानः ब्राह्ममुहूर्त में ब्रह्म-परमात्मा का चिंतन करते
हुए।
Nibbling is symbolic of impudence and is also the disgrace
of the water god. When bathing in any river, lake, ocean, well, bawdi etc., the
urine should not be immersed in water. Prior to bathing every day, after
applying mustard pure oil in both legs toes, the light of the eyes does not
weaken till old age. Types of baths: For the purification of mind - Brahma
Shastra: In contemplation of Brahma-Parmatma in Brahmamhuutt.
देव
स्नानः सूर्योदय के पूर्व देवनदियों
में अथवा उनका स्मरण करते हुए। समयानुसार स्नानः ऋषि स्नानः आकाश में तारे दिखते हों तब ब्राह्ममुहूर्त में।
मानव स्नानः सूर्योदय के पूर्व। दानव
स्नानः सूर्योदय के बाद चाय-नाश्ता लेकर 8-9 बजे। करने योग्य स्नानः ब्रह्म स्नान एवं देव स्नान युक्त ऋषि स्नान। रात्रि में या संध्या के
समय स्नान न करें। ग्रहण
के समय रात्रि में भी स्नान कर
सकते हैं।
Dev shower: In the Devanidas before sunrise or remembering
them Bathing time: Rishi bath: stars in the sky, then in Brahma muhurat Human
bath: Before sunrise Demon bath: 8-9 hours after taking tea and snacks after
sunrise Shower bath: Sage bath with Brahma bath and god bath. Do not take bath
during the night or in the evening. At the time of eclipse, you can also take
bath in the night.
स्नान के पश्चात तेल
आदि की मालिश न
करें। भीगे कपड़े न पहनें। (महाभारत,
अनुशासन पर्व) दौड़कर आने पर, पसीना निकलने पर तथा भोजन
के तुरंत पहले तथा बाद में स्नान नहीं करना चाहिए। भोजन के तीन घंटे
बाद स्नान कर सकते हैं।
बुखार में एवं अतिसार (बार-बार दस्त लगने की बीमारी) में
स्नान नहीं करना चाहिए। दूसरे के वस्त्र, तौलिये,
साबुन और कंघी का
उपयोग नहीं करना चाहिए।
Do not massage oil after bath. Do not wear too wet clothes.
(Mahabharata, discipline festival) should not take bath after coming out, after
sweating and immediately before and after the meal. After three hours of the
meal can take a bath. Do not take bath in fever and diarrhea. Secondly, the use
of garments, towels, soap and comb should not be used.
त्वचा की स्वच्छता के
लिए साबुन की जगह उबटन
का प्रयोग करें। सबसे सरल व सस्ता उबटनः
आधी कटोरी बेसन, एक चम्मच तेल,
आधा चम्मच पिसी हल्दी, एक चम्मच दूध
और आधा चम्मच गुलाबजल लेकर इन सभी को
मिश्रित कर लें। इसमें
आवश्यक मात्रा में पानी मिलाकर गाढ़ा लेप बना लें। शरीर को गीला करके
साबुन की जगह इस
लेप को सारे शरीर
पर मलें और स्नान कर
लें।
Use sieve instead of soap for skin hygiene. The most simple
and cheap ubton: Mix all these with half a bowl of gram flour, a spoonful of
oil, half a spoon of turmeric powder, a spoonful of milk and half a teaspoon of
rose water. Add the required quantity of water and make a thick paste. Wet the
body and replace this soap with soap on the whole body and take a bath.
शीतकाल में सरसों का तेल और
अन्य ऋतुओं में नारियल, मूँगफली या जैतून का
तेल उबटन में डालें। मुलतानी मिट्टी लगाकर स्नान करना भी लाभदायक है।
सप्तधान्य उबटनः सात प्रकार के धान्य (गेहूँ,
जौ, चावल, चना, मूँग, उड़द और तिल) समान
मात्रा में लेकर पीस लें। सुबह स्नान के समय थोड़ा-सा पानी में
घोल लें। शरीर पर थोड़ा पानी
डालकर शरीरशुद्धि के बाद घोल
को पहले ललाट पर लगायें, फिर
थोड़ा सिर पर, कंठ पर, छाती पर, नाभि पर, दोनों भुजाओं पर, जाँघों पर तथा पैरों
पर लगाकर स्नान करें।
In winter, add mustard oil, coconut, groundnut or olive oil
in the oil and other seasons. It is also beneficial to take bath with multitani
soil. Saptariya Ubattan: Grind seven kinds of grains (wheat, barley, rice,
gram, moong, urad and sesame) in equal quantity. In the morning, take a bath in
a little water. Put some water on the body after body-body, put the solution on
the frontal first, then take a bath on the head, on the throat, on the chest,
on the navel, on both sides, on the thighs, and on the feet.
ग्रहदशा
खराब हो या चित्त
विक्षिप्त रहता हो तो उपर्युक्त
मिश्रण से स्नान करने
पर बहुत लाभ होता है तथा पुण्य
व आरोग्य की प्राप्ति भी
होती है। स्नान करते समय कान में पानी न घुसे इसका
ध्यान रखना चाहिए। स्नान के बाद मोटे
तौलिये से पूरे शरीर
को खूब रगड़-रगड़ कर पोंछना चाहिए
तथा साफ, सूती, धुले हुए वस्त्र पहनने चाहिए। टेरीकॉट, पॉलिएस्टर आदि सिंथेटिक वस्त्र स्वास्थ्य के लिए अच्छे
नहीं हैं। जिस कपड़े को पहन कर
शौच जायें या हजामत बनवायें,
उसे अवश्य धो डालें और
स्नान कर लें।
If the planetary direction is bad or the mind remains
neurotic, then bathing with the above mixture gives great benefits and also
attains virtue and health. It should be kept in mind when you do not get water
in the ear while bathing. After bath, thick towels should be thoroughly rubbing
the whole body with rubbing and wearing clean, cotton, washed clothes.
Terricot, polyester etc. synthetic textiles are not good for health. Wash and
wash the clothes you wear, wash or wash them.
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
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yourselfhealthtips.blogspot.com
आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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