ऐसे करें त्वचा की सुरक्षा(सनबर्न और टैनिंग) Such as skin protection (sunburn and tanning)
गर्मी
में तेज धूप में रहने से त्वचा पर
सनबर्न और टैनिंग हो
जाती है। ऐसे में इससे बचने के लिए त्वचा
की खास देखभाल करनी चाहिए। डॉक्टर ने सनबर्न से
त्वचा को सुरक्षित रखने
के संबंध में ये सुझाव दिए
हैं:
Staying in hot sun in summer causes sunburn and tanning on the skin. In this case, special care should be taken of the skin to avoid this. The doctor has given these suggestions regarding protecting the skin from sunburn:
* सुबह
10 बजे से लेकर शाम
छह बजे के बीच धूप
में निकलने से बचने की
कोशिश करें, क्योंकि इस दौरान तेज
धूप होती है। अगर संभव हो तो इस
दौरान किसी गतिविधि से बचने की
कोशिश करें, लेकिन अगर जरूरी काम है तो जितना
संभव हो सके छाए
में रहे या छतरी लेकर
निकलें।
Try to avoid leaving the sun in the morning between 10 a.m.
and 6 p.m., because there is strong sunlight during this period. If possible,
try to avoid any activity during this time, but if there is urgent work then
leave as much as possible or leave the umbrella.
* हमेशा
सनस्क्रीन का इस्तेमाल करें।
इसे लगाए बिना घर से बाहर
नहीं निकलें। बाहर निकलने से कम से
कम 15 मिनट पहले सनस्क्रीन लगाएं। हर दो-तीन
घंटे पर इसे लगाने
की कोशिश करें। त्वचा के अनुसार सन
प्रोटेक्शन फैक्टर (एसपीएफ) 15 या इससे ज्यादा
एसपीएफ वाला सनस्क्रीन लगाएं।
Always use sunscreen. Do not leave the house without
planting it. Apply sunscreen at least 15 minutes before exiting. Try to apply
it every two-three hours. According to skin, apply Sun Protection Factor (SPF)
sunscreen with SPF 15 or more.
* आसमान
में बादल छाए रहने पर भी सनस्क्रीन
लगाना नहीं भूले, क्योंकि सूर्य की हानिकारक पराबैंगनी
किरणें बादलों के पार से
भी आपकी त्वचा को नुकसान पहुंचा
सकती हैं और सनबर्न दे
सकती हैं।
Even if the sky is cloudy, do not forget to apply sunscreen,
because the harmful ultraviolet rays of the sun can also damage your skin
across the clouds and may give sunburn.
* होठों,
कानों, स्कैल्प और पैरों को
नजरअंदाज न करें। शरीर
के इन अंगों की
देखभाल को आम तौर
पर हम अनदेखा कर
देते हैं। आजकल एसपीएफ युक्त लिप बाम आ रहे हैं,
जिनका आप इस्तेमाल कर
सकती हैं। पैरों को जूते या
मोजे से ढककर रखें,
जबकि सिर और कानों को
आप स्कार्फ से ढक सकती
हैं। अपने पैरों और कानों पर
भी सनस्क्रीन लगाना नहीं भूलें।
Do not ignore the lips, ears, scalp and feet. We usually
ignore the care of these organs of the body. Nowadays you have a lip balm with
SPF, which you can use. Cover legs with shoes or socks, while head and ears can
cover you with scarves. Do not forget to put sunscreen on your feet and ears
too.
* समुद्र
तट या बीच पर
मौजूद होने पर या पानी
में होने पर सनस्क्रीन जरूर
लगाएं, क्योंकि पानी में होने पर तेज धूप
के संपर्क में आकर सनबर्न होने की संभावना बढ़
जाती है।
Sunscreen should be present at the beach or on the beach or
in the water, because the possibility of sunburn is increased when exposed to
the strong sun in the water.
* गमियों
में बाहर से घर आने
के बाद सनबर्न से बचने के
लिए कूलिंग लोशन या नारियल तेल
सनबर्न वाले हिस्से पर लगाएं। सनबर्न
वाले हिस्से पर एलोवेरा लगाना
भी लाभकारी होता है। यह टैन हटाने
और स्ट्रेच मार्क कम करने में
भी मददगार साबित होता है।
To avoid sunburn after coming home from home in the sacks,
place a cooling lotion or coconut oil on the sunburn portion. Applying aloevara
on sunburn area is also beneficial. It also helps in removing tan and reducing
stretch marks.
* विटामिन
युक्त आहार का सेवन करें।
विटामिन डी युक्त आहार
जैसे फर्मेटेड कॉड लीवर ऑयल शरीर में विटामिन डी की आपूर्ति
को संतुलित रखते हैं और सन बर्न
के खिलाफ मजबूत प्रतिरोधक क्षमता विकसित करते हैं।
Eat a vitamin containing diet. Foods containing vitamin D,
such as Fructated Cod Liver Oil, balance the supply of vitamin D in the body
and develop strong resistance against sunburn.
Dr.Manoj Bhai Rathore
Ayurveda doctor
Email id:life.panelbox@gmail.com
क्या करे क्या न करे(स्वास्थ्य सुझाव)What to do, what not to do (health tips)
Self site:-see you again search आप फिर से खोज देखें
yourselfhealthtips.blogspot.com
आवश्यक दिशा निर्देश
1.
हमारा आपसे अनुरोध है कि यदि आप किसी भी तरह के रोग से पीड़ित हैं तो आपको
अपना इलाज किसी अनुभवी चिकित्सक की देख-रेख में ही कराना चाहिए क्योंकि
बिना चिकित्सक की सलाह के दवा लेना और एकसाथ एक से अधिक पैथियों का प्रयोग
करना हानिकारक हो सकता है।
2.
अगर हमारी वेबसाइट में दिए गए नुस्खों या फार्मूलों से आपको किसी भी
प्रकार की हानि होती है, तो उसके लिए आप स्वयं जिम्मेदार होंगे, क्योंकि इन
नुस्खों को गलत तरीके से लेने के कारण ये विपरीत प्रभाव उत्पन्न कर सकते
हैं। इसके अलावा आयुर्वेदिक नुस्खों का प्रभाव रोगी की प्रकृति, समय और
जलवायु के कारण अलग-अलग होता है।
3.
औषधि का सेवन करते समय आपको अपने खान-पान (पथ्यापथ्य) का पूरा ध्यान
रखना चाहिए क्योंकि किसी भी रोग में औषधि के प्रयोग के साथ-साथ परहेज भी
रोग को ठीक करने में महत्वपू्र्ण भूमिका निभाता है।
4.
रोगी को कोई भी दवा देने से पहले यह जानना आवश्यक है कि रोग की उत्पत्ति
किस कारण से हुई है। जिस कारण से रोग पैदा हुआ है उसकी पूरी जानकारी रोगी
से लेनी बहुत जरूरी होती है, क्योंकि अधूरे ज्ञान के कारण रोगी का रोग कुछ
होता है और उसे किसी अन्य रोग की औषधि दे दी जाती है। इसके परिणामस्वरूप
रोगी की बीमारी समाप्त होने के बजाय असाध्य रोग में बदल जाती है।
5.
शरीर को स्वस्थ और शक्तिशाली बनाने के लिए शुद्ध आहार की जानकारी बहुत ही
जरूरी है, क्योंकि इस जानकारी से आप असाध्य से असाध्य रोग को जड़ से समाप्त
कर शरीर को पूर्ण रूप से रोग मुक्त कर सकते हैं।
6. प्रत्येक पैथी में कुछ दवाईयां कुछ रोगों पर बहुत ही असरदार रूप से प्रभावकारी होती हैं।
7.
प्रत्येक पैथी का अविष्कार आवश्यकता पड़ने पर ही हुआ है क्योंकि एक जवान
और मजबूत आदमी को मसाज, एक्यूप्रेशर, एक्यूपेंचर, हार्डपेथियों एवं
औषधियों द्वारा लाभ पहुंचाया जा सकता है लेकिन असाध्य रोग से पीड़ित,
शारीरिक रूप से कमजोर और बूढ़े रोगियों पर इन पेथियों का उपयोग नहीं किया
जा सकता है।
8.
आयुर्वेद और होम्योपैथिक के सिद्धांत बिल्कुल मिलते-जुलते हैं क्योंकि
आयुर्वेद से ही होम्योपैथिक की उत्पत्ति हुई है जैसे- जहर को जहर द्वारा ही
उतारा जा सकता है, कांटे को कांटे से ही निकाला जा सकता है।
9.
रोगी के लक्षणों की जांच के दौरान चिकित्सक को तीन बातों का विशेष रूप से
ध्यान रखना चाहिए, पहला-देखना, दूसरा-स्पर्श (छूना) और तीसरा- प्रश्न
करना या रोगी से सवाल पूछना। महान ऋषि ‘सुश्रुत’ के अनुसार कान, त्वचा,
आंख, जीभ, नाक इन 5 इन्द्रियों के माध्यम से किसी भी तरह के रोग की
वास्तविकता की आसानी से पहचान की जा सकती है।
10.
चिकित्सक को चाहिए कि, वह तीमारदार (रोगी की देखभाल करने वाला) से रोगी
की शारीरिक ताकत, स्थिति, प्रकृति आदि की पूरी जानकारी लेने के बाद ही
उसका इलाज करे।
11.
चिकित्सक को इलाज करने से पहले रोगी को थोड़ी-सी दवा का सेवन कराके इस बात
का अध्ययन करना चाहिए कि यह दवा रोगी की शारीरिक प्रकृति के अनुकूल है या
नहीं।
12.
जिस प्रकार व्याकरण के पूर्ण ज्ञान के बिना शिक्षक योग्य नहीं हो पाता है,
उसी प्रकार से बीमारी के बारे में पूरी जानकारी हुए बिना किसी प्रकार की
औषधि का इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए क्योंकि हर औषधि के गुण-धर्म और दोष
अलग-अलग होते हैं।
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